illuminati दुनिया का सबसे खतरानाक खुफ़िया समूह
illuminati एक Secret Group है जो की राक्षसों की पूजा करते है. इसका स्थापना 1776 में जर्मनी एडम विशाप ने किया और उस समय इसका नाम था "The Order Of Illuminati" यह के Secret Community है. जो भी इंसान इस Community को ज्वाइन करता है वह इसके बारे किसी और को नहीं बता सकता है. जिस तरह से हम सभी भगवान/अल्लाह/गॉड की पूजा करते है वैसे ही Illuminati के Member राक्षस यानि लुस्फिर की पूजा करते है.
शहीद उधम सिंह की आत्मकथा
मुझे जानते हो? शहर के चौक पे लगा बुत कुछ कुछ मेरी शक्ल से मिलता है और उस पर नाम लिखा रहता है – शहीद उधम सिंह। मेरी जिंदगी की दास्तान जानने की इच्छा है। कहां से शुरु करें। चलो शुरु से ही शुरु करता हूं।
कैसे बर्बाद किया गया हमारे देश की शिक्षा प्रणाली को - मैकाले की अग्रेजी शिक्षा व्यवस्था
मैं भारत में काफी घुमा हूँ। दाएँ- बाएँ, इधर उधर मैंने यह देश छान मारा और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो, जो चोर हो। इस देश में मैंने इतनी धन दौलत देखी है, इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं की मैं नहीं समझता की हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे।
इल्लुमिनाती क्या है ?
एक ऐसा गुप्त संगठन जो १०० से ज्यादा देशों मे परोक्ष सरकार चला रहा है जो ८०% जनता को मरना चाहता है उसके लिए अनाज को खरीद कर गोदामों मे रखता है चाहे सड जाये मगर गरीब के मुह न पडे इसी तरह से भारत मे २१००० लोग प्रति दिन मर रहै है
ईसाई मिशनरी का काला सच….!
साल 2006 में हॉलीवुड की एक ब्लॉकबस्टर फ़िल्म The Vinci code रिलीज हुई थी जिसे भारत में प्रदर्शित होने पर रोक लगा दिया गया था...? लेकिन क्यों, ऐसा क्या था उस फिल्म में...?
Monday, July 16, 2018
पोस्ट लम्बी है इसे पूरा पढ़े, अगर आपका अपना इल्लुमिनाती के बारे में अगर कोई विचार हो तो उसे भी रख सकते है।
Sunday, July 15, 2018
नाम में क्या रखा है?
मुगलसराय |
Wednesday, July 11, 2018
ईसाई मिशनरी का काला सच….!
साल 2006 में हॉलीवुड की एक ब्लॉकबस्टर फ़िल्म The Vinci code रिलीज हुई थी जिसे भारत में प्रदर्शित होने पर रोक लगा दिया गया था...?
शब्दों की `कट-पेस्ट` और विचारों की `असेंबलिंग` रिसाइकल बिन में रिश्ते..!!
`कमांड पे कमांड... कमांड पे कमांड गुरु मेरे संग रह रहकर मशीनी हो चुके हो तुम..!`
`अबे ! तेरी ये मजाल स्क्रीन के अंदर ही बना रह ज्यादा फैलने की कोशिश मत कर..!`
`गुरु ! मैं तो रह लूंगा तुम भी तो अपनी जिंदगी की स्क्रीन के अंदर रहने की कोशिश करो..! मुझसे ज्यादा ही दोस्ती के चक्कर में तुम्हारे रिश्तों की जीवंतता ना खो जाए कहीं..!`
`अबे..! काहे किलप रहा है क्या हो गया तुझे ?`
‘मुझे क्या होना है हुआ तो तुम लोगों को हैं। जिस तरह से आपकी जिंदगी में शब्दों की `कट-पेस्ट` और विचारों की `असेंबलिंग` चल रही है उसी वजह से इन दिनों आपके रिश्ते `रिफ्रेश` नहीं हो पा रहे हैं। आपको यूं नहीं लगता जैसे इस टेक-सेवी युग में भावनाएं भी मशीनी होती जा रही हैं। `कमांड` देकर `स्विच ऑफ` और `स्विच ऑन` करने वाली। संबंधों से गर्मजोशी गायब हो रही है। सुख है, सुविधा है, सुकून खो गया है। भागमभाग करके `टारगेट` पूरे किए जा रहे हैं, जबकि राडार पर अपने बच्चे ही नहीं आ रहे हैं, उनके साथ बिताने के लिए समय ही नहीं है। एसएमएस भी `फारवर्ड` किए जा रहे हैं क्योंकि रोमांटिक बातों के लिए भी वक्त नहीं है। मैसेज भी पहुंच जरूर रहा है लेकिन अहसास का ‘लाइनलॉस’ प्रभाव नहीं छोड़ पा रहा है। इसीलिए तो रिश्ते जल्दी ही बेजान हो रहे हैं तो रिसाइकल बिन में डालकर उन्हें अर्थी की तरह ढोया जाने लगता है। आदमी के दिमाग में राम नाम सत्य की `रिंगटोन` तो बिना कहे बजती जा रही है।
`तो करें क्या बे ?`
संबंधों को `रिस्टार्ट` भी करना चाहे तो पहल करने की समस्या है।
`सॉरी` ओल्ड वर्जन हो चुका है। जबकि ईगो के एक से बढ़कर एक वर्जन सामने आ रहे हैं। ऊपर से गलतफहमी के `वायरस` से बचाने वाला मां-बाप या करीबी दोस्तों वाला `एंटी वायरस` `हम-तुम` वाली जिंदगी के सॉफ्टवेयर में अपलोड ही नहीं किया जा रहा है। नतीजे रिश्ते `करप्ट` हो रहे हैं। अविश्वास का `स्पैम` भारी पड़ रहा है।
जिन विषयों को प्राथमिकता के साथ डेस्कटॉप पर `सेव` होना चाहिए वे `डिलीट` किए जा रहे हैं। मशीनी जिंदगी में तो दिए जा रहे कमांड का रिजल्ट इतना सटीक है कि बचकानापन करने की कोई गुंजाइश ही नहीं है। सोचिए बंधु! रिश्ते कोई गणित का समीकरण होते है क्या ? संबंधों के तयशुदा फॉमूले होते हैं क्या ? जो सही किया तो सही जवाब ही मिलेगा। अरे रिश्तो में बचपना ना हुआ फलेंगे फूलेंगे कैसे?
तो किसी दिन मौका देखकर जिंदगी के कंप्यूटर को `रिबूट` कीजिए न! कुछ बचपने वाली फाइलें डाउनलोड कीजिए न! अच्छे पलों को हर बार सेव कीजिए न! रोजमर्रा में `स्पेस` का बटन दबाते रहिए न! जीवन में मॉल कल्चर के साथ मां-बाप को भी `एंटर` कीजिए न! कड़वाहटों को `रिप्लेस` करके निश्चित तौर पर जानिए। आप `कट-पेस्ट` वाली जिंदगी से आप उस एवरग्रीन वाले मोड में आ जाएंगे जहां खुशियों पर आपका पुख्ता `कंट्रोल` होगा। जो जालिम जमाने के कितने भी जोर पर कहीं `शिफ्ट` नहीं होगा।
तो मित्रो, एक बार दुनिया जहान की बातों को `शटडाउन` करके मेरा इन बातों पर गौर करके तो देखिए, आपके रिश्तों की `बैटरी` हमेशा `फुलचार्ज` दिखाएगी सच मानिए..!
Monday, July 9, 2018
निकलो न बेनक़ाब, ज़माना खराब है
निकलो न बेनक़ाब, ज़माना खराब है
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है..!
सब कुछ हमें खबर है..नसीहत न कीजिये,
क्या होंगे हम खराब, ज़माना खराब है,
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है..!
पीने का दिल जो चाहे, उन आँखों से पीजिए,
मत पीजिए शराब, ज़माना खराब है….
मुमताज राशिद के बोल और पंकज उदास जी की खनकती आवाज ने आज फिर मुझे कुछ उदास सा किया है। मोदी-राहुल बाबा के संग बबुआ-बुआ की राजनीतिक चिंता सबको खाएं जा रही हैं। बिहार अपने यूथ आइकॉन एक्स मंत्री, मुख्यमंत्री पुत्र श्री श्री लालुवंशी यादव के विवाह की तैयारी में मंगलगान गा रहा हैं। इधर तैमूर के पॉटी न होने की खबरें भी मीडिया की सुर्खियां बटोर रही हैं।और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है…!
अब कल से मीडिया अपनी सोनम कपूर के सोनम आहूजा बनने की खबरें छान रही हैं। वाराणसी के पंडित जी के रंडवा बेटे कुंदन की जोया, फिर देश के लौंडों संग खेल गई। इधर, आम आदमी को जिओ इंटरनेट की लत लगा, अम्बानी चचा अपनी बेटा-बेटी बियाह रहे हैं।अब इसी फ्री 1.5 जीबी फ्री इंटरनेट पर पूर्वांचल के कुँवारे लौंडे, जो कल तक लूलिया मांग रहे थे…आज इस तथ्य पर पीएचडी रिसर्च कर रहे हैं कि राते दिया बुता के पिया, क्या-क्या किया..?
हैरान-परेशान देश दुनिया और विपक्ष, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार से जवाब मांग रही हैं कि आखिर राहुल और सलमान चाचा की शादी क्यों नहीं हो पा रही हैं? अच्छे दिनों के दिवास्वप्न में देश को उलझा, घुम्मकड़ प्रधानमंत्री विदेशों संग स्थापित दोस्ती को अखंड सिंगल्स के लिए रिश्तेदारी में परिवर्तित करने के लिए बाप-दादा जी की भूमिका निभा-निभा कर चप्पल घिस रहे हैं।
लिंगानुपात से जूझ रहे देश में लड़कियों की जबरदस्त शादी वाली डिमांड के बीच ये ड्यूडनिया अपने बाबुल की गली मोहल्ले को बाई-बाई कह, इंस्टाग्राम के बाद अब म्यूजिकली एप्प से अपने कहर युक्त कारनामों से आतंक फैलाई जा रही हैं।
इतना कांड होने के वावजूद अबतक दुनिया को तहस नहस करने वाला तूफान किसी ट्रैफिक जाम में कहीं फंस कर रह गया है। कभी-कभार भारत-भर में फैले भसड़ युक्त चुतियापा से तंग-तंगाकार मन करता हैं कि किसी जिन्ना सेना से प्रशिक्षित होकर दुनिया को एटम बम से सफाया देते हैं। न रहेगी बांस, और न बजेगी बासुरी।
Friday, July 6, 2018
हिंदीभाषी होने का दर्द
दाल इतनी मँहगी होने के बावजूद हम अभी भी घर की मुर्गी को दाल बराबर ही मानते है इसलिए भले ही इंग्लिश अच्छे से ना आती हो लेकिन हिंदी बोलने और लिखने में हमें शर्म ज़रूर आती है। निर्बल का बल भले ही राम को माना जाता है लेकिन “स्टेटस सिंबल” का बल इंग्लिश को ही मनवाया गया है। इंग्लिश को जिस तरह से स्टेटस सिंबल से जोड़ा गया है उसे देखकर लगता है कि इसके लिए ज़रूर एम सील और फेवीक्विक के सयुंक्त उद्यम द्वारा उत्पादित माल का इस्तेमाल किया गया होगा । इंग्लिश और स्टेटस सिंबल का जो ये “मेल-जोल” है उसमे बहुत “झोल” है लेकिन फिर भी ये आपस में इतने मिले हुए है कि इन्हे अलग करना उतना ही मुश्किल है जितना की राहुल गाँधी में नेतृत्व क्षमता ढूँढना ।
भले ही आपने अभी तक लाइफ में कुछ ना उखाड़ा हो लेकिन इंग्लिश बोल और लिख सकने की कल्पना मात्र से आदमी अपने आप अपनी जड़ो से उखड़ने लगता है क्योंकि इंग्लिश आने के बाद कपितय सामाजिक कारणों से इंसान का ज़मीन से दो इंच ऊपर चलना ज़रूरी माना जाता हैं। डॉन का इंतजार तो भले ही 11 मुल्कों की पुलिस करती हो लेकिन एक “सोफिस्टिकेटेड- समाज” में बेइज़्ज़ती, हमेशा इंग्लिश ना जानने वालो का इंतज़ार करती हैं।
हिंदी कहने के लिए (बोलने के लिए नहीं ) भले ही हमारी राजभाषा हो लेकिन उसकी हालत हमने राष्ट्रीय खेल हॉकी जैसी करने में कोई कसर बाकि नहीं रखी है। हम स्वाभिमानी और आत्म निर्भर लोग है इसलिए हमें मंजूर नहीं कि हमारे होते हुए कोई बाहरी व्यक्ति या शक्ति हमारी राष्ट्रीय गौरव से जुड़ी चीज़ो को नुकसान पहुँचाए। मतलब जिन चीज़ो पर राष्ट्रीय होने का तमगा लग जाता है उनकी हालत हम ऐसी कर देते हैं की उन्हें खुद अपने राष्ट्रीय होने पर शर्म आने लगे। हम अहिंसा के अनुयायी है इसीलिए किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए हिंसक नहीं होते, बस केवल उसे अपनी नज़रो में गिरा देते है। हम समता और सदभाव के वाहक है , राष्ट्र की सीमाओं पर घुसपैठ रोकना, अतिथी देवो भव: की हमारी कालजयी अवधारणा के खिलाफ हैं इसलिए “यूनिफोर्मिटी” बनाए रखने के लिए हमने अपनी राष्ट्रीय भाषा में भी दूसरी भाषा के शब्दों की घुसपैठ को बढ़ावा दिया है ताकि ये संदेश दिया जा सके की हम अपनी नीतियों को कन्सिसटेंसी से लागू करते है । “यूनिफार्म सिविल कोड” का विरोध करने वाले लोग इसी “यूनिफोर्मिटी” का हवाला देते हुए तर्क देते है की हम तो पहले से ही “यूनिफार्म सिविल कोड” का पालन कर रहे है।
तमाम काबिलियत के बावजूद हिंदी मीडियम वाले और इंग्लिश ना बोल पाने वालो को हेय दृष्टि से देखा जाता हैं जो HD से भी ज़्यादा क्लियरिटी वाली होती है। बिना इंग्लिश जाने हिंदी मीडियम वालो की सारी योग्यताए ऊंट के मुँह के जीरे के समान होती हैं लेकिन इंग्लिश का ज्ञान मिलते ही वही सारी योग्यताए “जलजीरे” जैसी राहत देती हैं। आजकल हिंदी मीडियम के छात्रों को इंग्लिश की जानकारी अपनी “बुक” से कम और “फेसबुक” से ज़्यादा मिलती है जहाँ वो अपने फ्रेंडस की फोटो पर दूसरों के कमेंट्स देख- देख कर “नाईस पिक” तो लिखना सीख ही जाते है हालांकि उसका मतलब उन्हें तब भी पता नहीं होता है। बुक्स से दूर रहकर भी ये स्टूडेंट्स फेसबुक पर “गुड मॉर्निंग” , “गुड आफ्टरनून”, “गुड इवनिंग” और “गुड नाईट” लिखना सीख जाते हैं और चूँकि फेसबुक पर कॉपी -पेस्ट की सुविधा भी होती है इसलिए “स्पेलिंग मिस्टेक” जैसी कोई दुर्घटना होने की संभावना भी कम ही रहती हैं। लेकिन समस्या तब आती हैं जब चैट करनी हो या किसी के कमेंट का जवाब देना होता है , क्योंकि उस समय बड़ा कन्फ्यूजन हो जाता हैं कि किसी के “हैप्पी बर्थडे” या “आई लव यू” का जवाब “सेम टू यू” से देना है या फिर “थैंक यू” से, और उसी समय किसी भी संभावित बेइज़्ज़ती के खतरे को भाँप लेते हुए हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स लोग आउट करके पतली गली से निकल लेते है ताकि सामने वाला भी उन्ही की तरह भ्रम में जीये. हिंदी मीडियम वाले भले ही “फॉरवर्ड” ना माने जाते हो लेकिन तकनीकी विकास की मदद से कोई भी इंग्लिश वाला मैसेज आगे “फॉरवर्ड” करके “सोफिस्टिकेटेड- समाज” के निर्माण में अपना योगदान तो दे ही रहे है।
स्कूल कॉलेज तक तो हिंदी मीडियम वालो का काम ठीक वैसे ही चल जाता हैं जैसे ख़राब तकनीक वाले बल्लेबाज़ का काम भारतीय पिचों पर चलता हैं लेकिन असली समस्या तब शुरू होती है जब उच्च शिक्षा के लिए इन्हे इंग्लिश से दो-दो हाथ करने के लिए चार पैर वाले पशु की तरह मेहनत करनी पड़ती हैं। मतलब देश की व्यवस्था ऐसी हैं की शिशु अवस्था में चुनी हुई हिंदी आपको व्यस्क होने पर पशुता की तरफ धकेल देती है। हिंदी मीडियम वाले किसी छात्र को जब पता लगता हैं की कोई कोर्स केवल इंग्लिश में ही कर पाना संभव हैं तो उसे इंग्लिश लैंग्वेज चुनौती और हिंदी भाषा पनौती लगने लगती हैं। अगर कोई गलती से या उत्साह से , ये पूछ भी ले की हिंदी राजभाषा वाले देश में इंग्लिश की अनिवार्यता क्यों रखी जाती हैं तो उसका मुँह, मेन्टोस देकर, “दुबारा मत पूछना” स्टाइल में बंद कर दिया जाता हैं।
इंग्लिश ना आने के कारण कुछ लोग हीन भावना के शिकार हो जाते हैं और कुछ लोग 7 दिन में इंग्लिश सीखे जैसे कोर्सेज के। कुछ लोग अपनी कमजोरी को अपना हथियार बना लेते है और ऐसी इंग्लिश बोलने और लिखने लगते हैं मानो अंग्रेज़ो से 200 साल की गुलामी का बदला उनकी भाषा से सूद समेत लेंगे। बड़े बुजुर्ग कह कर गए है , “जहाँ इज़्ज़त ना हो वहाँ इंसान को नहीं जाना चाहिए” , इसलिए हिंदी मीडियम वाले हॉलीवुड की इंग्लिश फिल्में देखने नहीं जाते है और वैसे भी “सयाने लोगो” ने सही कहाँ है की, “अपनी सुरक्षा इंसान को स्वयं करनी चाहिए” और इसके लिए , क्रिकेट में ऑफ स्टंप से बाहर जाती गेंदों से और जीवन में औकात से बाहर जाती चीज़ो से छेड़खानी नहीं करनी चाहिए।
ऐसा नहीं है की हिंदी की दशा और दिशा सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाये जा रहे (हालांकि कई भाषायी विद्वानों का मानना है की अब समय आ गया है की हिंदी की दशा सुधारने के लिए कदम के साथ साथ “हाथ” भी उठाया जाए। ). ये हमारी दूरदर्शिता का ही परिणाम है की हम हिंदी की स्थिती सुधारने के लिए बरसो पहले से ही हिंदी दिवस से हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाड़ा मनाते आ रहे हैं । चिंता, चिता समान है इसलिए हिंदी सप्ताह और पखवाड़े के दौरान जानकारों द्वारा हिंदी की दशा पर व्यक्त की गई चिंता को बैठकों के दौरान बिस्कुट और भुजिया के पैकेट्स पर फूंके गए हज़ारो रुपये की अग्नि में स्वाहा कर दिया जाता है। लेकिन फिर भी विद्वानों द्वारा इतनी अधिक मात्रा में चिंता व्यक्त कर दी जाती है की की इसके “रेडियो एक्टिव” प्रभाव से बचने के लिए और चिंता को ओवरफ्लो होने से बचाने के लिए उसे हिंदी सप्ताह /पखवाड़े के “मिनिट्स” बनाकर फाइलों में दबाकर अलमारियों में रख दिया जाता हैं और फिर अगले साल तक हिंदी चिंतामुक्त होजाती है।
Wednesday, July 4, 2018
इंटरनेशनल भिखारी - पाकिस्तान..!
ठसाठस भरे बाजार के बीच एक आदमी की दहाड़ गूंजी ‘ मैं खुद को उड़ा देनेवाला हूँ ! ‘
चौंक कर सब ने देखा तो एक गोल मटोल सा अधेड़ उम्र का आदमी दिखाई दिया. उसने एक जाकिट पहना था जो खुला था और अन्दर कुछ वायर्स का जंजाल सा दिखाई दे रहा था. जाकिट काफी लदा हुआ दिख रहा था !!
डरते डरते किसी ने पूछा – यह क्या भरा है?
RDX है – चीख कर उसने जवाब दिया और जेब से एक रिमोट निकाला.
हज़ारों की भीड़ में किसी को काटो तो खून नहीं....
फिर एक बुजुर्ग मियां आगे बढे, कहने लगे मियां ऐसा मत करो ...‘ऐसा न करूँ तो क्या करूँ ? ‘ वो चिल्लाया, ‘तंग आ गया हूँ खर्चे से..... आठ बीवियां है, चालीस बच्चे है, सब के मोबाइल बिल, गाड़ियाँ, उसके लिए पेट्रोल, शौपिंग, और अब इन सब को आराम से रहने के लिए मुनासिब एक घर ... खुद को उड़ा देना ही बेहतर होगा ..... उसने रिमोट पर हाथ कसा ..अमां ठहरो मियां , चलो हम तुम्हारी मदद कर देते हैं जितनी बन सके – भीड़ में से एक सहमी सी आवाज आई. रिमोट पर का कसाव थोडा कम हुआ , और थोडा कम हुआ जब एक वेल ड्रेस्ड आदमी ने हज़ार की नोट सामने रक्खी....
लेकिन इसने रईस की भरी जेब देख ली थी; फिर चिल्लाया .....एक से क्या होगा, बेहतर होगा बटन दबा ही दूँ... पूरी थोकड़ी लिए घूम रहा है.... रईस ने थोकड़ी रख ली और झट से रास्ता नाप लिया, फटाफट नोट जमा होने लगे, बीच बीच में ये रिमोट भांजता रहा, चिल्लाता रहा, पैसे जमा होते रहे ...आखिर में एक दुकानदार के नौकर ने उसे एक बोरी थमा दी, जिसमें वो पैसे बटोरने लगा.... अब उसकी चिंता दूर हुई लगती थी, सीटी भी बजा रहा था ...
जब लदी हुई बोरी को ले कर वो निकला तो किसी ने पूछ लिया – मियाँ, आप की तारीफ़?
‘पाकिस्तान’, उसने बेफिक्री से जवाब दिया और चला गया
चौंक कर सब ने देखा तो एक गोल मटोल सा अधेड़ उम्र का आदमी दिखाई दिया. उसने एक जाकिट पहना था जो खुला था और अन्दर कुछ वायर्स का जंजाल सा दिखाई दे रहा था. जाकिट काफी लदा हुआ दिख रहा था !!
डरते डरते किसी ने पूछा – यह क्या भरा है?
RDX है – चीख कर उसने जवाब दिया और जेब से एक रिमोट निकाला.
हज़ारों की भीड़ में किसी को काटो तो खून नहीं....
फिर एक बुजुर्ग मियां आगे बढे, कहने लगे मियां ऐसा मत करो ...‘ऐसा न करूँ तो क्या करूँ ? ‘ वो चिल्लाया, ‘तंग आ गया हूँ खर्चे से..... आठ बीवियां है, चालीस बच्चे है, सब के मोबाइल बिल, गाड़ियाँ, उसके लिए पेट्रोल, शौपिंग, और अब इन सब को आराम से रहने के लिए मुनासिब एक घर ... खुद को उड़ा देना ही बेहतर होगा ..... उसने रिमोट पर हाथ कसा ..अमां ठहरो मियां , चलो हम तुम्हारी मदद कर देते हैं जितनी बन सके – भीड़ में से एक सहमी सी आवाज आई. रिमोट पर का कसाव थोडा कम हुआ , और थोडा कम हुआ जब एक वेल ड्रेस्ड आदमी ने हज़ार की नोट सामने रक्खी....
लेकिन इसने रईस की भरी जेब देख ली थी; फिर चिल्लाया .....एक से क्या होगा, बेहतर होगा बटन दबा ही दूँ... पूरी थोकड़ी लिए घूम रहा है.... रईस ने थोकड़ी रख ली और झट से रास्ता नाप लिया, फटाफट नोट जमा होने लगे, बीच बीच में ये रिमोट भांजता रहा, चिल्लाता रहा, पैसे जमा होते रहे ...आखिर में एक दुकानदार के नौकर ने उसे एक बोरी थमा दी, जिसमें वो पैसे बटोरने लगा.... अब उसकी चिंता दूर हुई लगती थी, सीटी भी बजा रहा था ...
जब लदी हुई बोरी को ले कर वो निकला तो किसी ने पूछ लिया – मियाँ, आप की तारीफ़?
‘पाकिस्तान’, उसने बेफिक्री से जवाब दिया और चला गया