illuminati दुनिया का सबसे खतरानाक खुफ़िया समूह

illuminati एक Secret Group है जो की राक्षसों की पूजा करते है. इसका स्थापना 1776 में जर्मनी एडम विशाप ने किया और उस समय इसका नाम था "The Order Of Illuminati" यह के Secret Community है. जो भी इंसान इस Community को ज्वाइन करता है वह इसके बारे किसी और को नहीं बता सकता है. जिस तरह से हम सभी भगवान/अल्लाह/गॉड की पूजा करते है वैसे ही Illuminati के Member राक्षस यानि लुस्फिर की पूजा करते है.

शहीद उधम सिंह की आत्मकथा

मुझे जानते हो? शहर के चौक पे लगा बुत कुछ कुछ मेरी शक्ल से मिलता है और उस पर नाम लिखा रहता है – शहीद उधम सिंह। मेरी जिंदगी की दास्तान जानने की इच्छा है। कहां से शुरु करें। चलो शुरु से ही शुरु करता हूं।

कैसे बर्बाद किया गया हमारे देश की शिक्षा प्रणाली को - मैकाले की अग्रेजी शिक्षा व्यवस्था

मैं भारत में काफी घुमा हूँ। दाएँ- बाएँ, इधर उधर मैंने यह देश छान मारा और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो, जो चोर हो। इस देश में मैंने इतनी धन दौलत देखी है, इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं की मैं नहीं समझता की हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे।

इल्लुमिनाती क्या है ?

एक ऐसा गुप्त संगठन जो १०० से ज्यादा देशों मे परोक्ष सरकार चला रहा है जो ८०% जनता को मरना चाहता है उसके लिए अनाज को खरीद कर गोदामों मे रखता है चाहे सड जाये मगर गरीब के मुह न पडे इसी तरह से भारत मे २१००० लोग प्रति दिन मर रहै है

ईसाई मिशनरी का काला सच….!

साल 2006 में हॉलीवुड की एक ब्लॉकबस्टर फ़िल्म The Vinci code रिलीज हुई थी जिसे भारत में प्रदर्शित होने पर रोक लगा दिया गया था...? लेकिन क्यों, ऐसा क्या था उस फिल्म में...?

Monday, July 16, 2018

पोस्ट लम्बी है इसे पूरा पढ़े, अगर आपका अपना इल्लुमिनाती के बारे में अगर कोई विचार हो तो उसे भी रख सकते है।

illuminati एक Secret Group है जो की राक्षसों की पूजा करते है. इसका स्थापना 1776 में जर्मनी एडम विशाप ने किया और उस समय इसका नाम था "The Order Of Illuminati" यह के Secret Community है. जो भी इंसान इस Community को ज्वाइन करता है वह इसके बारे किसी और को नहीं बता सकता है. जिस तरह से हम सभी भगवान/अल्लाह/गॉड की पूजा करते है वैसे ही Illuminati के Member राक्षस यानि लुस्फिर की पूजा करते है.

कैसे इल्लुमिनाती ने ,सरकार ,नयायालय ,यहाँ तक की जनता तक को अपने सिकंजे में कर रक्खा है


एक ऐसा गुप्त संगठन जो १०० से ज्यादा देशों मे परोक्ष सरकार चला रहा है जो ८०% जनता को मरना चाहता है उसके लिए अनाज को खरीद कर गोदामों मे रखता है चाहे सड जाये मगर गरीब के मुह न पडे इसी तरह से भारत मे २१००० लोग प्रति दिन मर रहै है (सरकारी आंकड़ा ) हर चीज़ मे इसका दखल है हर जगह इसके एजेंट्स हैं। कांग्रेस और AAP इल्लुमिनाती की एजेंट है भारत मे।
अब जब बीजेपी ने कांग्रेस को पछाड़ दिया है तो ये ही कांग्रेस अपना नाम बादल के नए रूप मे बदल रही है अब इस के एजंट आम आदमी पार्टी मे शामिल हो कर बीजेपी को हराने मे लगे हैं।

इल्लुमनिती दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोगो का एक सीक्रेट संगठन है, जो की पूरी दुनिया पर कब्ज़ा करना चाहता है, इसके मुख्य उद्देश्य है पूरी दुनिया में बिना किसी बॉर्डर के सभी देशो में एक मुद्रा एक संस्कृति, एक सभ्यता, एक जाति विशेष का एकछत्र साम्राज्य हो, इसके लिए इन्हें जनसख्या पर भी नियन्त्रण करना है, जिसका एक ही एक उपाय है, लोगो का जातीय सामूहिक संहार, फिर चाहे वो प्रथम विश्व युद्ध करवाना हो या द्वितीय या भारत पाक युद्ध या फिर वियतनाम अमेरिका युद्ध, या अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमला, या अब तीसरे विश्वयुद्ध के साथ साथ जल-युद्ध और परमाणु युद्ध की तयारी
इस संगठन पर वर्तमान में यहूदियों और कुछ सीमा तक ईसाईयों का कब्ज़ा है, यहूदियों से इसलिए क्यूंकि अमेरिका में भी उन्ही का दबदबा है और इल्लुमनिती को अधिकतर फण्ड वही से मिलता है,
पूरी दुनिया में इल्लुमनिती का सबसे बड़ा दुश्मन, शत्रु है हिन्दू,
जी हाँ, सनातन धर्म इल्लुमनिती का सबसे बड़ा शत्रु है,

किसी भी देश में कोई भी सत्ता बिना इनके हस्तक्षेप के नहीं चल सकती,
शायद कुछ लोगो को ये बात हजम न हो, पर भारत में कोई भी सरकार चाहे वो आ चुकी है या आने वाली है वो इन्ही के इशारों पर चली है और चलेगी,
इनका सबसे बड़ा प्रोजेक्ट एक और है,एक फिल्म है the resident Evil और भारत में बनी हुई Go Goa Gone, इन सभी में एक ही समानता है, लोगो को वायरस द्वारा अर्द्धमृत कर देना और उनकी बुद्धि पर नियंत्रण करना,इलुमनिती वायरस द्वारा भी माध्यम व् गरीब लोगो का समुहिक संहार करने के प्रोजेक्ट पर काम कर रही है और इसके लिए उन्होंने लोगो के मन में डर बैठाने के लिए हॉलीवुड और बॉलीवुड का सहारा लिया है, उपर लिखे २ नाम तो केवल एक मोहरा है, लिस्ट काफी लम्बी है,
जिस वायरस पर इल्लुमनिती संगठन अब तक कार्य कर रहा है उसका केवल एक ही तोड़ है और वो है यज्ञ, यज्ञ न केवल हानिकारण किरणों, गैसों, बल्कि जैविक परमाणु और अन्य रासायनिक हथियारों को आराम से निष्क्रिय कर सकता है, चावल जो की सबसे अच्छा anti-atom पदार्थ है, इसकी यज्ञ में आहुति से पूरा वातावरण परमाणु विकिरण से मुक्त हो जाता है, इसके अतिरिक्त और भी हजारो ऐसे पदार्थ या हवन सामग्री में प्रयोग होने वाले तत्व है जो इनसे मुक्ति दिला सकते है,
इमुलानिती का उद्देश्य किसी विशेष समुदाय का समर्थन नहीं करना है, केवल अपने लाभ के लिए ये एक मजहब के दुसरे मजहब के विरुद्ध प्रयोग करते है
इलुमनिती का सबसे मुख्य कार्य इस समय सनातन धर्म को ही समाप्त करना है, इसके कारण बहुत है – पहला सनातन धर्म में अध्यात्म और ईश्वरीय तत्व, जहाँ अध्यात्म व् ईश्वरीय आभास होगा वहां पर पैशाचिक विचारो का होना असंभव है, सनातन धर्म को समाप्त करने के लिए ही इस्लाम और ईसाईयत को पुरे देश में इल्लुमनिती द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है, जिस कारण बड़े पैमाने पर मुसलमानों द्वारा धर्मान्तरण, लव जिहाद, दंगे आदि हो रहे है,
Community से किस तरह के लोग जुड़े है:



दुनिया के लगभग सभी पोपुलर लोग Illuminati के मेम्बर है और यह किसी ना किसी तरीके से Illuminati से जुड़े है उसका प्रचार-प्रसार कर रहे है. इस ग्रुप के लोग डायरेक्ट किसी से नहीं कहते है की Illuminati ज्वाइन करे और ना खुले आम इसका प्रचार करते है. यह सभी लोग secret तरीके से चिन्हों के माध्यम से Illuminati का प्रचार करते है और Illuminati के कुछ चिन्ह है जिन्हें अगर कोई Photo, Video, Party कही भी दीखता है तो इसका मतलब वह Illuminati का मेम्बर है और वह Secret चिन्ह के द्वारा इसका Promotion कर रहा है ,
America President से लेकर Russia President तक, Hollywood से लेकर Bollywood तक Illuminati फैला हुआ है और जितने भी जल्दी सक्सेस हुए है वो सभी Illuminati के मेम्बर है. क्योकि इस ग्रुप का एक Moto है "Other New World" मतलब एक ऐसा World हो जहा सब एक जैसे हो और कुछ ऐसा करो जिससे लोगो खुद से तुम्हारे जैसा करे.
ब्रिटेन के वो तेरह राज घराने हैं (ये राज घराने ही सबसे बड़े इलयुमनाती कहलाते है। अब ये ना केवल ब्रिटेन मे है बल्कि ये अमेरिका आदि और बहुत से यूरोपीय देशो मे जम कर बैठे हुए है। rothschild & rockefeller भी इसी श्रेणी मे आते हैं) । उसके बाद कमिटी 300 , उसके नीचे WTO, वर्ल्ड बैंक ,और IMF, NSA, CIA, NETO, आदि है और नीचे आएँगे तो मिडिया ,विदेशी कंपनी ,न्यायलय ,सरकार (कांग्रेस/AAP) ,ब्युरोकेट्स ,बैंक , विदेशी NGOs सब आएँगे l इनकी जड़े पूरी दुनिया मे इतनी गहराई फेली हुई हैं इनको खतम करना नामुमकिन है। हाँ बस ये हो सकता है की इनका प्रभाव हम अपने देश मे जितना हो सके कम कर सकते है लेकिन खतम करना नामुमकिन है (जैसे के एक बहुत ही शुद्ध देश जापान ने कर रखा है वो इलयुमनाती की चपेट से काफी हद तक बाहर है)।

सबसे पहले इलयुमनाती ने पूरी दुनिया मे पुराने स्वदेशी सिस्टम को खतम करके नया क्र्न्सी सिस्टम जबर्दस्ती लागू किया। इस से पहले भारत मे लेन देन चीज़ें अदला बदली कर के किया जाता था (या सोने चांदी की कीमत के सिक्के हुआ करते थे)।
आपने पुराने समय मे गांवों आदि मे देखा होगा के अनाज के बदले पंसारी से कुछ भी सामान खरीद सकते थे या कपड़े के बदले आदि से कुछ भी खरीद सकते थे।
इसको ठीक से समझो ये वास्तव मे एसा है जैसे अपनी कोई कीमती चीज़ किसी को देकर उसकी कीमती चीज़ ले लेना। मेरे पास कोई वस्तु अधिक है तो मे उस वस्तु के बदले किसी ओर से कोई दूसरी वस्तु ले लूँगा जो मेरे पास तो कम है (और देने वाले के पास वो वस्तु ज़्यादा है।)
ये लेन देन सिस्टम भारत मे कई सालों से प्रचलित था। लेकिन अब उसकी जगह क्र्न्सी सिस्टम ने ले ली है। क्र्न्सी सिस्टम = केवल पेसे वाले के पास सब कुछ।
लेन देन सिस्टम = सबके पास सब कुछ।


illuminati

अब जब इलयुमनाती को क्रनसी सिस्टम मे भी खामिया दिखने लगी है (क्योंकि उस से ज्यादा मुनाफा नहीं हो राहा क्यों की भारतीय क्र्न्सी सोने के बदले मे है) तो उनहों ने नया सिस्टम शुरू किया क्र्न्सि की जगह खाली कागज के डैब्ट नोट (अर्थार्त इसके बदले मे सोना नहीं मिलेगा) सिस्टम चलाया जा राहा है इस डैब्ट नोट को डॉलर भी कहते हैं।
विदेशी लूट पर आज तक यदि खुल कर बोला है तो राजीव दिक्षीत जी ने बोला है ,,बाबा रामदेव जी ने भी कई विडिओ हैं WTO वर्ल्ड बैंक के खिलाफ l और येही बात RSS कई सालों से बोल रही है। बीजेपी के अजंडे मे भी इसके कुछ अंश शामिल हैं।
आखिर क्यों लगातार रुपया गिरता जा रहा है ,,कुछ लोग कांग्रेस से ऊपर सोचते ही नहीं यही भुल है l कांग्रेस और AAP तो छोटा सा प्यादा है उनका (इल्क्लुमिनाती का)। जिस जिस ने इनको रोकने की कोशिश की वो मौत के घाट उतार दिये गए। एसे ही एक नायक थे लाल बहादुर शास्त्री जी इनहों ने 18 महीने मे ही सारी विदेशी कंपनिया यहाँ से भागा दी थी। अमेरिका से अनाज लेना बंद कर दिया था आधे से ज्यादा पाकिस्तान जीत लिया था। लेकिन इलयुमनाती ने इनको मरवा दिया अमेरिका के थ्रु।
ये एक ही नायाक है जिसके बारे लोग जानते है एसे तो ना जाने कितने नायक मारे जा चुके जिनकी कोई प्रसिद्धि नहीं है।

वास्तविकता तो ये है की इलयुमनाती सभी को मार देते हैं जो इनका कहना नहीं मानते उनको भी और जो कहना मानते है वो तभी तक ज़िंदा रहते जब तक वो उनके काम के लायक है। काम पूरा हो जाने के बाद वो उन्हे भी मरवा देते हैं (जैसे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी आदि)
इनको मात देने का तरीका केवल और केवाल RSS ने ही निकाला है। अगर अपनी जान बचानी है तो इनहि का कहना मान कर इनहि के तरीके से संविधान से बाहर ना जाकर धीरे धीरे इनपर प्रेशर बनाना ऐस बखूबी काम सरदार वालाभ भाई पटेल ने किया। कांग्रेस्स मे हो कर भी सारे देश को एक जुट करगाए और अपनी निजी उम्र लेकर चलेगाए।
इल्लुमिनाती ये वो 13 राज घराने है (अंग्रेज़ कह लीजिये) जब देश को आज़ाद (नकली आज़ादी )करके गई तो लोगो ने सोचा हम आज़ाद हो गए , अब हमसे कोई लगान नहीं लिया जाएगा , अब हमसे कोई टेक्स नहीं लिया जाएगा, पर क्या ऐसा हुआ ?
इल्लुमिनाती ने तीन प्रमुख संस्थाएं बनाई , IMF( International Monetary Fund) और वर्ल्ड बैंक, तीसरा कारखाना लगाया जिसको आप अमेरिकी फेड रिजर्व के नाम से जानते है , पर बहुत लोग जानते होंगे की अमेरिका सरकार का है वो फेड रिजर्व l अम्रेरिका का नहीं इल्लुमिनाती का है वो फेड रिजर्व l फेड रिजर्व में ठोक भाव में डालर (कागज़ )छापना शुरू किया ,,कर्जा बाटने के लिए ,,,जी हाँ अमेरिका को भी कर्जा दिया ,,,सारे देशो को फ्री में कागज(डालर ) के बाटा ,,बदले में उनको क्या चाहिए था ? संसाधन ,,कैसा संसाधन ,,अरब देशो से पेट्रोल,,,भारत से लोहा कोयला आदि आदि, जब की संसाधनों पर मूल हक़ देश की जनता का होना चाहिए, पर उन राक्षसों को जनता नाम से नफरत है ,,,पूरी पृथ्वी उनके बाप की है ऐसा सोचते हैं वो राक्षस.....।
हुआ यूँ की उन तेरह राज घरानों(इल्लुमिनाती ) ने लूटने का फार्मूला बदल दिया ,,,अब वो डंडा लेकर नहीं परेशान करते ,,बल्कि डंडे वालो की फ़ौज खड़ी कर दी, पुलिस जज कोर्ट सरकार संविधान सब उन्ही का ही तो काम करते हैं। 1945 के आस पास की बात है जब उन्होंने न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का प्रोग्राम आस्तित्व में लाए ,उसके बाद ही उपर्युक्त तीन संस्थाओं को बनाया।

कैसे लुटती है इल्लुमिनाती इन संस्थाओं से
जबरन विश्व के सारे देशों को इनमे शामिल होने के लिए दबाव बनवाया ,,,डालर यानी कागज़ देने का लालच दिया ,,,नेहरु तो उनका एजेंट था मान गया सारी बात ,,नहीं मानता तो मौत होती ,,मिला कर्जा डॉलर (कागज के रूप मे), जब की भारत को कर्ज की आवश्यकता ही नहीं थी इतने संसाधन खुद थे भारत के पास। बदले में विदेशी कंपनियों का जाल बिछाया और ठेका मिलने लगा खदानों का ,,लूटने लगे वो संसाधनों को ,,आज तक लुट रहे हैं
अब थोड़ी सी दिकत आने लगी राक्षसों को ,,,संसाधन उनको महंगे मिलते थे ,,इसलिए IMF से दबाव बनवा कर रूपए की किमत गिरवाने लगे ,,,आज तक वो सिलसिला जारी है ,,कोई भी प्रधान मंत्री बनता है वो रुपया गिरवाता है ,, (केवल प्रधान मंत्री चंद्र शेखर और अटल बिहारी वजपाई को छोड़ कर) सरकार को डर इस बात का रहता है की कहीं वर्ल्ड बैंक पुराना कर्जा न मांगने लगे l जब की कर्जा कैसा ,,लिया तो डालर यानी कागज ही था l
वैनिजुएला के राष्ट्रपति ने इतना बोला की मुझे पेट्रोल के बदले डालर नहीं चाहिये सोना गोल्ड चाहिए ,,मरवा दिया इल्लुमिनाती ने (ये ही बाद सदाम हुसैन ने काही थी मारा गया, यही बात गद्दाफ़ी ने काही थी मारा गया)
पहले लोहा इल्लुमिनाती 50 रूपए किलो खरीदती थी आज आठ रूपए किलो खरीद रही है ,,,मतलब जनता के लिए मंहगाई बढ़ रही है उनके लिए घट रही है ,,,कैसे रूपए का दाम गिरवा कर ,,किस्से अपनी ही बनाई संस्था IMF से। illuminati Network

जनता और आम आदमी पर कैसे मकड़ जाल फैलाया इल्लुमिनाती ने


पूरा झोल तंत्र ,,,,कैसे लुट रहा है भारत ,,,कैसे फिर सोने की चिड़िया बनेगा भारत ,,कौन लूट रहा है भारत को आपकी भाषा में समझाना है इसलिए ,,पोस्ट लम्बी हो जाएगी पर पढ़ें जरुर ,,



Indian Illuminati Members

सबसे पहले आपको ये समझना होगा की विदेशी कंपनी ,MNC, मिशनरी , देश की सत्ता चला रही हैं ,,जो की इल्लुमिनाती की गुलाम हैं ,,सारे बैंक यहाँ तक की भारतीय रिजर्व बैंक भी उनकी इजाजत के बिना नोट नहीं छाप सकता ,,जी हाँ रोक्फेलर दानव की बात हो रही है ,,ये दानव् रोक्फेलर ,रोथ्चिल्ड ही देश की सत्ता पर कब्ज़ा किये हुए हैं l राजनीति यानि संविधान देने वाले वो हैं ,कोर्ट जज पुलिस देने वाले वो हैं ,,मिडिया तो उन्ही की है ,,,मिडिया ही सारी खबरों को जलेबी बना कर पेश करती है ,लगता तो है की वो जनता के हित की खबर दे रही है लेकिन सही मायने में वो दानवो को फायदा पहुंचाने का काम करती है।
अब कुछ उदहारण कैसे लुट रहा है भारत

एक गरीब पैसे कमाने की लालसा में एक गाँव में चावल मिल या दाल मिल खोलता है ,,कमाता भी है ,,थोडा पैसा आया उसने गाड़ी खरीदी ,मिला दानवो को लाभ ,,,फिर कुछ पैसे आए उसने AC खरीदी ,,,,कमाँ रहा है वो किसानो से ,दे रहा हैं विदेशी कंपनी को ,,,,फिर कुछ पैसे आए पहुँच गया आईपीएल देखने फिर दिया दानवो को फायदा ,,,जादा पैसे हो गए लगाने लगा सट्टा फिर फायदा पहुंचाया दानवो को ,,,कुछ लोग उसके पास पहुंचे बीमा करा लिया फिर पैसा गया विदेश फिर फायदा दानवो को ,,
फिर खेलने लगा शेयर मार्केट ,फिर दानवो को फायदा ,,,यदि नहीं खेला शेयर तो कोई बीमा पालिसी ले ली उसका पैसा लगा शेयर में फिर फायदा दानवो को ,,,ग्लोबेलाइज़ेशन इसी को कहते हैं।
दूसरा उधाहरण =एक वकील गाँव में वकालत शुरू करता है ,,वो भी यही सब करता है
तीसरा उधाहरण = आम आदमी जो पैसे नहीं बना पाता वो भी पैसे दानवो तक भेजता हैं ,सुबह उठा मजन किया पैसा मिला दानवो को ,,नहाया साबुन से फायदा मिला दानवो को ,,पिक्चर देखने गया फायदा मिला दानवो को ,,,विदेशी खाद खरीदी ,पैसा मिला दानवो को ,,,यदि माल से सब्जी खरीदी तो भी पैसा मिला दानवो को ..किसान भी जादा पैसे कमाने के लिए जल्दी पैसे कमाने के लिए तरह तरह के इंजेक्शन देता है सब्जियों में ,,फायदा दानवो को l
चौथा उदहारण =डाक्टर भी पैसा बनाने के बाद यही सब करता है
पांचवा उधाहरण ==कुछ समाज सेवी संस्थाओं का भी में उद्देश्य पैसा है ,,,वो भी दानवो की मदद कर रहे हैं
छठा उदहारण =जिनके पास जादा पैसा होगया है ,बिल्गेत ,उनको दानव लोगो को मारने के काम में लगा दिया है है ,,दान करो संपत्ति मिलवाओ वैक्सीन में जहर ,,,लोगो की अवसत आयु साठ साल बना दो ,,कोई सौ साल डेढ़ सौ साल जिए ही न ,,,दानव सऊदी के सेखो को खरीद कर आतंकवाद फैला रहा है ..बंगलादेशियो को घुसवा रहा है ,,मारकाट करो ,मारो लोगो को ,,,,भारत को मुग्लिस्तान में विभाजन की पूरी तैयारी है



समाधान
पुरे इल्लुमिनाती नेटवर्क का विनाश ,,,कैसे होगा युद्ध से ,,,कौन लडेगा ,,कोई भारत वासी ,,,कैसा युद्ध होगा ,
सबसे पहले तो दानवो का नाश जो पैसे रुपी माया को फैला कर आदमी को मजबूर कर दिया है की पैसे में ही व्यस्त रहो ,,,जी हाँ इल्लुमिनाती दानवो का नाश जिनका वर्ल्ड बैंक है ,,जिनका IMF है ,जिनका कंट्रोल अमेरिकी फेड रिजर्व पर भी है ,,जिनके इशारे पर डालर छपते हैं l नाश कैसे होगा ==अगले महाभारत से ,,योगमाया से ,गीता के कर्मयोग से ,,,कृष्णा का सुदर्शन चलेगा सबका नाश होगा ,,कलयुग २०२५ में खत्म,यजुर्वेद कहता है ये हाँ एक बात =आपको ये टेंडर सिस्टम समझना होगा ,,,टेंडर लेकर ही विदेशी कम्पनियाँ देश पर कब्ज़ा किये हुए हैं ,,कोयला लोहा सब हमारा है ,,सरकार से लेकर ये कंपनिया हमें ही बेचती हैं ,,,बिजली हमें फ्री मिलनी चाहिए वो भी हम खरीदते हैं ,,,बांध हमारे ,नदी हमारी फिर भी बिजली खरीदते हैं कैसे इल्लुमिनाती बांग्लादेशियों को घुस्वाती है और आतंकवाद को बढ़ावा देती है पुरे विश्व की जनता आतुरता से इन्तजार कर रही है उस महामानव का जो इल्लुमिनाती नेटवर्क का विनाश करेगा
बीजेपी ही पहली एसी पार्टी है जिसने ये काहा टेक्स व्यवस्था बिलकुल नहीं होनी चाहिए। टेक्स जितना कम गवर्नेंस जितनी ज्यादा अछा होता। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ही एक मात्र एसे प्रधान मंत्री है जिन्हों ने आते ही पेट्रोल रशिया से लेना शुरू कर दिया है और BRICS के मेम्बर होने की वजह से नरेदर मोदी ने BRICS के बाकी देशों को भी रशिया से पेट्रोल लेना शुरू करवा दिया है जिसमे चाइना भी है। इस घटना से अमेरिका (इलयुमनाती) घबराया हुआ। इसी वजह से डालर भी पेसे के मुकाबले कुछ अंशों मे घटना शुरू हो गया है। और नरेंद्र मोदी के MAKE IN INDIA के नारे ने तो इलयमनाती की हालत खराब कर दी है। क्यूँ की इलयमनाती से सारी दुनिया परेशान है इस लिय कई छोटे बड़े देश भी नरेंद्र मोदी जी की गोवर्नेंस मे अपनी रुचि दिखाने लगे है। और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरुवात कर दी है। make in India, डिफ़ेंसे सिस्टम मजबूत बना के, रॉ को मजबूत बना के, और छोटी बड़ी कई नई योजनाए शुरू करदी है जो सीधा सीधा इलयुमनाती पर अटेक है।

Sunday, July 15, 2018

नाम में क्या रखा है?

 मुगलसराय 
बख्तियार खिलजी अफगान था और एक तुर्क सुल्तान कुतुबद्दीन ऐबक का सेनापति भी। उसने सुल्तान के आदेश पर उत्तर पूर्व भारत में सैन्य लूट का सिलसिला आरंभ किया। इसी लूट पाट और नरसंहार के क्रम में आगे बढ़ते हुए वह नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय पहुंचा। उसने देखा कि इन विश्वविद्यालयों में तो काफिरों की विद्या पढ़ाई जाती है। उसके लिए अल्लाह के दीन की शिक्षा के अलावा और किसी शिक्षा की संसार में कोई जरूरत न थी। इसलिए उसने दोनों विश्वविद्यालयों को तहस नहस कर दिया। कहते हैं उसने किताबों में आग लगवाई तो किताबें और पांडुलिपियां महीनों जलती रहीं।
यही बख्तियार खिलजी आगे बढ़ा तो पूर्वी भारत पर राज करने के लिए पटना के पास ११९३ में एक छोटा सा नगर भी बसाया। उस वक्त उसने उसका नाम रखा बेगमपुर। लेकिन वह ज्यादा दिन जिन्दा न रह सका। दस साल बाद ही उसकी मौत हो गयी। लेकिन उसने बेगमपुर नामक जो नगर बसाया था वह जिन्दा रहा और कालांतर में उसे सम्मान देने के लिए उस बेगमपुर का नाम बदलकर बख्तियारपुर कर दिया गया। इस वक्त यह बख्तियारपुर पटना शहर का ही एक हिस्सा है और यहीं से चुनकर बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानसभा जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार को मालूम नहीं कि जिस बख्तियार खिलजी के नाम पर बने नगर का वो प्रतिनिधित्व करते हैं उसका बिहार के विनाश में क्या योगदान है। लेकिन संभवत: नीतीश कुमार या उनके जैसे नेताओं की अपनी चेतना इतनी दमित है कि उन्हें नामों से कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके लिए हर नाम सिर्फ एक नाम है जिसका सिर्फ भूगोल है, इतिहास नहीं। लेकिन ऐसा है नहीं। भारत में बहुत सारे नामों का भूगोल तो है ही, इतिहास भी है। कुछ का इतिहास तो इतनी क्रूर और भयावह है कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जाएं लेकिन हमारी दमित चेतना पर कोई असर नहीं होता। हम भारत के लोग उस शराबी की तरह हो गये हैं जिसकी स्वाद ग्रंथि को शराब पी गयी है। अब उसे कुछ भी खिलाओ, उसे कोई फर्क ही महसूस नहीं होता।
अगर फर्क महसूस होता तो आजादी के बाद यूपी और बिहार में सबसे पहले नाम बदलने का काम किया जाता। वो नाम जो अपने भीतर एक क्रूर इतिहास समेटे हुए हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार इसलिए पूरे इस्लामिक आक्रमण काल में सबसे ज्यादा नामकरण इसी इलाके में किये गये। नगरों से लेकर गावों तक। इस्लामिक विचारधारा के तहत नाम बदले भी गये और नये नाम रखे भी गये। पीढ़ी दर पीढ़ी ये नाम चलते रहे और आक्रमणकारियों ने इन इलाकों में रहनेवाले लोगों की पहचान मिटाकर जो नयी पहचान दी, लोगों ने उसे ही अपनी पहचान बना लिया।
अब सवाल ये है कि क्या आगे भी हमें इस पहचान को ही अपनी पहचान मान लेना चाहिए या भारतीय पहचान की पुनर्वापसी होनी चाहिए? इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि भारतीय मुसलमान भारत का अभिन्न हिस्सा हैं। भले ही आक्रमणकारी आये और लंबा इतिहास छोड़कर गये लेकिन मुसलमान का साथ हमारा वर्तमान है। क्या अगर इन नामों को बदला गया तो उससे मुसलमानों को कोई नुकसान होनेवाला है? क्या यह उनका दमन कहा जाएगा या उनकी पहचान छीन ली जाएगी?
ये सारे सवाल बेमतलब हैं। भारत में भारतीय मुसलमानों की पहली पहचान भारतीय जो उन्हें इस जमीन से मिलती है। फिर दूसरी पहचान उनके मजहब से मिलती है जिसकी जड़े सऊदी अरब में हैं। जिसे हम इस्लामी नाम कहते हैं, असल में वो इस्लामी नहीं बल्कि अरबी नाम हैं। ये नाम अरब में इस्लाम आने से पहले भी प्रयोग में लाये जाते थे। इस्लाम आने के बाद उन्होंने कोई विशिष्ट तरीके से नाम लिखना नहीं शुरु किया। मसलन, मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद का पैदाइशी नाम मोहम्मद ही था जबकि इस्लाम का प्रचार उन्होंने चालीस साल की उम्र में शुरु किया। यानी मोहम्मद नाम इस्लामिक नहीं बल्कि अरबी नाम है जो कि इस्लाम के आने से पहले अरब में चलन में था। इसलिए इसे इस्लाम से जोड़कर देखने की बजाय अरब संस्कृति से जोड़कर देखने की जरूरत है। भारत में अगर इन नामों को हटाया जाता है और उनकी जगह भारतीय नाम रखे जाते हैं तो यह इस्लाम के खिलाफ कहीं से नहीं होगा बल्कि इससे मुसलमानों की भारतीय पहचान ही मजबूत होगी।
एक और पहलू ये भी है कि कुछ लोग कहते हैं, नाम में क्या रखा है तो उनके लिए जरूरी है ये कहना कि नाम में ही सबकुछ रखा है। नाम ही हमें हमारी स्थानीय पहचान देता है। इसलिए आज कोई करे न करे, भविष्य में एक मुहिम चलाकर ये काम करना होगा कि भारत में भारतीय पहचान से जुड़े नामों की पुनर्वापसी हो ताकि वहां रहनेवाला व्यक्ति अपनी पहचान को उस जगह से जोड़ सके।

Wednesday, July 11, 2018

ईसाई मिशनरी का काला सच….!




साल 2006 में हॉलीवुड की एक ब्लॉकबस्टर फ़िल्म The Vinci code रिलीज हुई थी जिसे भारत में प्रदर्शित होने पर रोक लगा दिया गया था...?
लेकिन क्यों, ऐसा क्या था उस फिल्म में...?
एक और बात की रजनीश ओसो ने ऐसा क्या कह दिया था जिससे उदारवादी कहे जाने वाले और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढिंढोरा पीटने वाला अमेरिका रातों-रात उनका दुश्मन हो गया था और उनको जेल में डालकर यातनायें दी गयी और जेल में उनको थैलियम नामक धीमा जहर दिया गया जिससे उनकी बाद में मृत्यु हो गयी...!
क्यों वैटिकन का पोप बेनेडिक्ट उनका दुश्मन हो गया और पोप ने उनको जेल में प्रताड़ित किया...?
दरअसल इस सब के पीछे ईसाइयत का वो बदनुमा झूठ है जिसके खुलते ही पूरी ईसाईयत भरभरा के गिर जायेगी, और वो झूठ है इसा मसीह के 13 वर्ष से 30 वर्ष के बीच के 17 वर्षों का गायब होना...!
आखिर इसा मसीह की कथित रचना बाइबिल में उनके जीवन के इन 17 वर्षों का कोई ब्यौरा क्यों नहीं है...?
ईसाई मान्यता के अनुसार सूली पर लटका कर मार दिए जाने के बाद इसा मसीह फिर जिन्दा हो गया थे, तो जब जिन्दा हो गए थे तो वो फिर कहाँ गए इसका भी कोई अता-पता बाइबिल में नहीं है, ओशो ने अपने प्रवचन में ईसा के इसी अज्ञात जीवनकाल के बारे में विस्तार से बताया था, जिसके बाद उनको ना सिर्फ अमेरिका से प्रताड़ित करके निकाला गया बल्कि पोप ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उनको 21 अन्य ईसाई देशों में शरण देने से मना कर दिया गया...!
दरअसल हकीकत तो ये है की ईसाईयत को ईसा से कोई लेना देना नहीं है, अविवाहित माँ की औलाद होने के कारण बालक ईसा समाज में अपमानित और प्रताडित करे गए जिसके कारण वे 13 वर्ष की उम्र में ही भारत आ गए थे, यहाँ उन्होंने हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव में शिक्षा दीक्षा ली, एक गाल पर थप्पड़ मारने पर दूसरा गाल आगे करने का सिद्धान्त सिर्फ भारतीय धर्मो में ही है, ईसा के मूल धर्म यहूदी धर्म में तो आँख के बदले आँख और हाथ के बदले हाथ का सिद्धान्त था, भारत से धर्म और योग की शिक्षा दीक्षा लेकर ईसा प्रेम और भाईचारे के सन्देश के साथ वापिस जूडिया पहुँचे, इस बीच रास्ते में उनके प्रवचन सुनकर उनके अनुयायी भी बहुत हो चुके थे...!
इस बीच प्रभु ईसा के दो निकटतम अनुयायी पीटर और क्रिस्टोफर थे इनमें पीटर उनका सच्चा अनुयायी था जबकि क्रिस्टोफर धूर्त और लालची था, जब ईसा ने जूडिया पहुंचकर बहुसंख्यक यहूदियों के बीच अपने अहिंसा और भाईचारे के सिद्धान्त दिए तो अधिकाधिक यहूदी लोग उनके अनुयायी बनने लगे, जिससे यहूदियों को अपने धर्म पर खतरा मंडराता हुआ नजर आया तो उन्होंने रोम के राजा Pontius Pilatus पर दबाव बनाकर उसको ईसा को सूली पर चढाने के लिए विवश किया गया...!
इसमें क्रिस्टोफर ने यहूदियों के साथ मिलकर ईसा को मरवाने का पूरा षड़यंत्र रचा, हालाँकि राजा Pontius को ईसा से कोई बैर नहीं था और वो मूर्तिपूजक Pagan धर्म जो ईसाईयत और यहूदी धर्म से पहले उस क्षेत्र में काफी प्रचलित था और हिन्दू धर्म से अत्यधिक समानता वाला धर्म है का अनुयायी था...!
राजा अगर ईसा को सूली पर न चढाता तो बहुसंख्यक यहूदी उसके विरोधी हो जाते और सूली पर चढाने पर वो एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या के दोष में ग्लानि अनुभव् करता तो उसने पीटर और ईसा के कुछ अन्य विश्वस्त भक्तों के साथ मिलकर एक गुप्त योजना बनाई...!
अब पहले मैं आपको यहूदियों की सूली के बारे में बता दूँ, ये विश्व का सजा देने का सबसे क्रूरतम और जघन्यतम तरीका है इसमें व्यक्ति के शरीर में अनेक कीले ठोंक दी जाती हैं जिनके कारण व्यक्ति धीरे धीरे मरता है, एक स्वस्थ व्यक्ति को सूली पर लटकाने के बाद मरने में 48 घंटे तक का समय लग जाता है और कुछ मामलो में तो 6 दिन तक भी लगे हैं, तो गुप्त योजना के अनुसार ईसा को सूली पर चढाने में जानबूझकर देरी की गयी और उनको शुक्रवार को दोपहर में सूली पर चढ़ाया गया, और शनिवार का दिन यहूदियों के लिए शब्बत का दिन होता हैं इस दिन वे कोई काम नहीं करते, शाम होते ही ईसा को सूली से उतारकर गुफा में रखा गया ताकि शब्बत के बाद उनको दोबारा सूली पर चढ़ाया जा सके...!
उनके शरीर को जिस गुफा में रखा गया था उसके पहरेदार भी Pagan ही रखे गए थे रात को राजा के गुप्त आदेश के अनुसार पहरेदारों ने पीटर और उसके सथियों को घायल ईसा को चोरी करके ले जाने दिया गया और बात फैलाई गयी की इसा का शरीर गायब हो गया और जब वो गायब हुआ तो पहरेदारों को अपने आप नींद आ गयी थी, इसके बाद कुछ लोगों ने पुनर्जन्म लिये हुए ईसा को भागते हुए भी देखा, असल में तब जीसस अपनी माँ Marry Magladin और अपने खास अनुयायियों के साथ भागकर वापिस भारत आ गए थे...!
इसके बाद जब ईसा के पुनर्जन्म और चमत्कारों के सच्चे झूठे किस्से जनता में लोकप्रिय होने लगे और यहूदियों को अपने द्वारा उस चमत्कारी पुरुष को सूली पर चढाने के ऊपर ग्लानि होने लगी और एक बड़े वर्ग का अपने यहूदी धर्म से मोह भंग होने लगा तो इस बढ़ते असंतोष को नियंत्रित करने का कार्य इसा के ही शिष्य क्रिस्टोफर को सौंपा गया क्योंकि क्रिस्टोफर ने ईसा के सब प्रवचन सुन रखे थे, तो यहूदी धर्म गुरुओं और क्रिस्टोफर ने मिलकर यहूदी धर्म ग्रन्थ Old Testament और ईसा के प्रवचनों को मिलाकर एक नए ग्रन्थ New Testament अर्थात Bible की रचना की और उसी के अधार पर एक ऐसे नए धर्म ईसाईयत अथवा Christianity की रचना की गयी जो यहूदियों के नियंत्रण में था, इसका नामकरण भी ईसा की बजाये Christopher के नाम पर किया गया...!
ईसा के इसके बाद के जीवन के ऊपर खुलासा जर्मन विद्वान् Holger Christen ने अपनी पुस्तक Jesus Lived In India में किया है, Christen ने अपनी पुस्तक में रुसी विद्वान Nicolai Notovich की भारत यात्रा का वर्णन करते हुए बताया है कि निकोलाई 1887 में भारत भ्रमण पर आये थे, जब वे जोजिला दर्र्रा पर घुमने गए तो वहां वो एक बोद्ध मोनास्ट्री में रुके, जहाँ पर उनको Issa नमक बोधिसत्तव संत के बारे में बताया गया, जब निकोलाई ने Issa की शिक्षाओं जीवन और अन्य जानकारियों के बारे में सुना तो वे हैरान रह गए क्योंकि उनकी सब बातें जीसस, ईसा से मिलती थी...!
इसके बाद निकोलाई ने इस सम्बन्ध में और गहन शोध करने का निर्णय लिया और वो कश्मीर पहुंचे जहाँ जीसस की कब्र होने की बातें सामने आती रही थी, निकोलाई की शोध के अनुसार सूली पर से बचकर भागने के बाद जीसस Turkey, Persia (Iran) और पश्चिमी यूरोप, संभवतया इंग्लैंड से होते हुए 16 वर्ष में भारत पहुंचे, जहाँ पहुँचने के बाद उनकी माँ मैरी का निधन हो गया था, जीसस यहाँ अपने शिष्यों के साथ चरवाहे का जीवन व्यतीत करते हुए 112 वर्ष की उम्र तक जिए और फिर मृत्यु के पश्चात् उनको कश्मीर के पहलगाम में दफना दिया गया...!
पहलगाम का अर्थ ही गड़रियों का गाँव हैं और ये अद्भुत संयोग ही है कि यहूदियों के महानतम पैगम्बर हजरत मूसा ने भी अपना जीवन त्यागने के लिए भारत को ही चुना था और उनकी कब्र भी पहलगाम में जीसस की कब्र के साथ ही है...!
संभवतया जीसस ने ये स्थान इसीलिए चुना होगा क्योंकि वे हजरत मूसा की कब्र के पास दफ़न होना चाहते थे हालाँकि इन कब्रों पर मुस्लिम भी अपना दावा ठोंकते हैं और कश्मीर सरकार ने इन कब्रों को मुस्लिम कब्रें घोषित कर दिया है और किसी भी गैरमुस्लिम को वहां जाने की इजाजत अब नहीं है, लेकिन इन कब्रों की देखभाल पीढ़ियों दर पीढ़ियों से एक यहूदी परिवार ही करता आ रहा है इन कब्रों के मुस्लिम कब्रें न होने के पुख्ता प्रमाण हैं...!
सभी मुस्लिम कब्रें मक्का और मदीना की तरफ सर करके बनायीं जाती हैं जबकि इन कब्रों के साथ ऐसा नहीं है, इन कब्रों पर हिब्रू भाषा में Moses और Joshua भी लिखा हुआ है जो कि हिब्रू भाषा में क्रमश मूसा और जीसस के नाम हैं और हिब्रू भाषा यहूदियों की भाषा थी, अगर ये मुस्लिम कब्र होती तो इन पर उर्दू या अरबी या फारसी भाषा में नाम लिखे होते...!
सूली पर से भागने के बाद ईसा का प्रथम वर्णन तुर्की में मिलता है पारसी विद्वान् F Muhammad ने अपनी पुस्तक Jami- Ut- Tuwarik में लिखा है कि Nisibi(Todays Nusaybin in Turky) के राजा ने जीसस को शाही आमंत्रण पर अपने राज्य में बुलाया था, इसके आलावा तुर्की और पर्शिया की प्राचीन कहानियों में Yuj Asaf नाम के एक संत का जिक्र मिलता है, जिसकी शिक्षाएं और जीवन की कहनियाँ ईसा से मिलती हैं...!
यहाँ आप सब को एक बात का ध्यान दिला दू की इस्लामिक नाम और देशों के नाम पढ़कर भ्रमित न हो क्योंकि ये बात इस्लाम के अस्तित्व में आने से लगभग 600 साल पहले की हैं...!
यहाँ आपको ये बताना भी महत्वपूर्ण है कि कुछ विद्वानों के अनुसार ईसाइयत से पहले Alexendria तक सनातन और बौध धर्म का प्रसार था, इसके आलावा कुछ प्रमाण ईसाई ग्रंथ Apocrypha से भी मिलते हैं, ये Apostles के लिखे हुए ग्रंथ हैं लेकिन चर्च ने इनको अधिकारिक तौर पर कभी स्वीकार नहीं किया और इन्हें सुने सुनाये मानता है...!
Apocryphal (Act of Thomas) के अनुसार सूली पर लटकाने के बाद कई बार जीसस Sent Thomus से मिले भी और इस बात का वर्णन फतेहपुर सिकरी के पत्थर के शिलालेखो पर भी मिलता है, इनमे Agrapha शामिल है जिसमे जीसस की कही हुई बातें लिखी हैं जिनको जान बुझकर बाइबिल में जगह नहीं दी गयी और जो जीसस के जीवन के अज्ञातकाल के बारे में जानकारी देती हैं...!
इसके अलावा उनकी वे शिक्षाएं भी बाइबिल में शामिल नहीं की गयी जिनमे कर्म और पुनर्जन्म की बात की गयी है जो पूरी तरह पूर्व के धर्मो से ली गयी है और पश्चिम के लिए एकदम नयी चीज थी, लेखक Christen का कहना है की इस बात के 21 से भी ज्यादा प्रमाण हैं कि जीसस Issa नाम से कश्मीर में रहा और पर्शिया व तुर्की का मशहूर संत Yuj Asaf जीसस ही था, जीसस का जिक्र कुर्द लोगों की प्राचीन कहानियों में भी है, Kristen हिन्दू धर्म ग्रंथ भविष्य पुराण का हवाला देते हुए कहता है कि जीसस कुषाण क्षेत्र पर 39 से 50 AD में राज करने वाले राजा शालिवाहन के दरबार में Issa Nath नाम से कुछ समय अतिथि बनकर रहा...!
इसके अलावा कल्हण की राजतरंगिणी में भी Issana नाम के एक संत का जिक्र है जो डल झील के किनारे रहा, इसके अलावा ऋषिकेश की एक गुफा में भी Issa Nath की तपस्या करने के प्रमाण हैं। जहाँ वो शैव उपासना पद्धति के नाथ संप्रदाय के साधुओं के साथ तपस्या करते थे, स्वामी रामतीर्थ जी और स्वामी रामदास जी को भी ऋषिकेश में तप करते हुए उनके दृष्टान्त होने का वर्णन है...!
विवादित हॉलीवुड फ़िल्म The Vinci Code में भी यही दिखाया गया है कि ईसा एक साधारण मानव थे और उनके बच्चे भी थे, इसा को सूली पर टांगने के बाद यहूदियों ने ही उसे अपने फायदे के लिए भगवान बनाया, वास्तव में इसा का Christianity और Bible से कोई लेना देना नहीं था...!
आज भी वैटिकन पर Illuminati अर्थात यहूदियों का ही नियंत्रण है और उन्होंने इसा के जीवन की सच्चाई और उनकी असली शिक्षाओं को छुपा के रखा है...!
वैटिकन की लाइब्रेरी में बाहर के लोगों को इसी भय से प्रवेश नहीं करने दिया जाता क्योंकि अगर ईसा की भारत से ली गयी शिक्षाओं, उनके भारत में बिताये गए समय और उनके बारे में बोले गए झूठ का अगर पर्दाफाश हो गया तो ये ईसाईयत का अंत होगा और Illuminati की ताकत एकदम कम हो जायेगी...!
भारत में धर्मान्तरण का कार्य कर रहे वैटिकन/Illuminati के एजेंट ईसाई मिशनरी भी इसी कारण से ईसाईयत के रहस्य से पर्दा उठाने वाली हर चीज का पुरजोर विरोध करते हैं, जीसस जहाँ खुद हिन्दू धर्मं/भारतीय धर्मों को मानते थे, वहीँ उनके नाम पर वैटिकन के ये एजेंट भोले-भाले गरीब लोगों को वापिस उसी पैशाचिकता की तरफ लेकर जा रहे हैं जिन्होंने Issa Nath को तड़पा तड़पाकर मारने का प्रयास किया था, जिस सनातन धर्म को Issa ने इतने कष्ट सहकर खुद आत्मसात किया था उसी धर्म के भोले भाले गरीब लोगों को Issa का ही नाम लेकर वापिस उसी पैशाचिकता की तरफ ले जाया जा रहा है...!
साभार- राज तिवारी ( फेसबुक वाल से)

शब्‍दों की `कट-पेस्‍ट` और विचारों की `असेंबलिंग` रिसाइकल बिन में रिश्ते..!!

उस दिन मेरा कंप्‍यूटर मुझसे फालतू में ही उलझ रहा था।

`कमांड पे कमांड... कमांड पे कमांड गुरु मेरे संग रह रहकर मशीनी हो चुके हो तुम..!`   
`अबे ! तेरी ये मजाल स्‍क्रीन के अंदर ही बना रह ज्‍यादा फैलने की कोशिश मत कर..!`
`गुरु ! मैं तो रह लूंगा तुम भी तो अपनी जिंदगी की स्‍क्रीन के अंदर रहने की कोशिश करो..! मुझसे ज्‍यादा ही दोस्‍ती के चक्‍कर में तुम्‍हारे रिश्‍तों की जीवंतता ना खो जाए कहीं..!`

`अबे..! काहे किलप रहा है क्‍या  हो गया तुझे ?`

‘मुझे क्‍या होना है हुआ तो तुम लोगों को हैं। जिस तरह से आपकी जिंदगी में शब्‍दों की `कट-पेस्‍ट` और विचारों की `असेंबलिंग` चल रही है उसी वजह से इन दिनों आपके रिश्ते `रिफ्रेश` नहीं हो पा रहे हैं। आपको यूं नहीं लगता जैसे इस टेक-सेवी युग में भावनाएं भी मशीनी होती जा रही हैं। `कमांड` देकर `स्विच ऑफ` और `स्विच ऑन` करने वाली। संबंधों से गर्मजोशी गायब हो रही है। सुख है, सुविधा है, सुकून खो गया है। भागमभाग करके `टारगेट` पूरे किए जा रहे हैं, जबकि राडार पर अपने बच्‍चे ही नहीं आ रहे हैं, उनके साथ बिताने के लिए समय ही नहीं है। एसएमएस भी `फारवर्ड` किए जा रहे हैं क्‍योंकि रोमांटिक बातों के लिए भी वक्‍त नहीं है। मैसेज भी पहुंच जरूर रहा है लेकिन अहसास का ‘लाइनलॉस’ प्रभाव नहीं छोड़ पा रहा है। इसीलिए तो रिश्‍ते जल्दी ही बेजान हो रहे हैं तो रिसाइकल बिन में डालकर उन्हें अर्थी की तरह ढोया जाने लगता है। आदमी के दिमाग में राम नाम सत्‍य  की `रिंगटोन` तो बिना कहे बजती जा रही है।

`तो करें क्‍या बे ?`

संबंधों को `रिस्‍टार्ट` भी करना चाहे तो पहल करने की समस्‍या है।
  `सॉरी` ओल्‍ड वर्जन हो चुका है। जबकि ईगो के एक से बढ़कर एक वर्जन सामने आ रहे हैं। ऊपर से गलतफहमी के `वायरस` से बचाने वाला मां-बाप या करीबी दोस्‍तों वाला `एंटी वायरस` `हम-तुम` वाली जिंदगी के सॉफ्टवेयर में अपलोड ही नहीं किया जा रहा है। नतीजे रिश्‍ते `करप्‍ट` हो रहे हैं। अविश्‍वास का `स्‍पैम` भारी पड़ रहा है।

    जिन विषयों को प्राथमिकता के साथ डेस्‍कटॉप पर `सेव` होना चाहिए वे `डिलीट` किए जा रहे हैं। मशीनी जिंदगी में तो दिए जा रहे कमांड का रिजल्‍ट इतना सटीक है कि बचकानापन करने की कोई गुंजाइश ही नहीं है। सोचिए बंधु!  रिश्‍ते कोई गणित का समीकरण होते है क्‍या ? संबंधों के तयशुदा फॉमूले होते हैं क्‍या ? जो सही किया तो सही जवाब ही मिलेगा। अरे रिश्‍तो में बचपना ना हुआ फलेंगे फूलेंगे कैसे?

तो किसी दिन मौका देखकर जिंदगी के कंप्‍यूटर को `रिबूट` कीजिए न! कुछ बचपने वाली फाइलें डाउनलोड कीजिए न! अच्‍छे पलों को हर बार सेव कीजिए न! रोजमर्रा में `स्‍पेस` का बटन दबाते रहिए न! जीवन में मॉल कल्‍चर के साथ  मां-बाप को भी `एंटर` कीजिए न! कड़वाहटों को `रिप्‍लेस` करके निश्चित तौर पर जानिए। आप `कट-पेस्‍ट` वाली जिंदगी से आप उस एवरग्रीन वाले मोड में आ जाएंगे जहां खुशियों पर आपका पुख्‍ता `कंट्रोल` होगा। जो जालिम जमाने के कितने भी जोर पर कहीं `शिफ्ट` नहीं होगा।

तो मित्रो, एक बार दुनिया जहान की बातों को `शटडाउन` करके मेरा इन बातों पर गौर करके तो देखिए, आपके रिश्‍तों की `बैटरी` हमेशा `फुलचार्ज` दिखाएगी सच मानिए..!

Monday, July 9, 2018

निकलो न बेनक़ाब, ज़माना खराब है

निकलो न बेनक़ाब, ज़माना खराब है   
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है..! 
सब कुछ हमें खबर है..नसीहत न कीजिये, 
क्या होंगे हम खराब, ज़माना खराब है, 
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है..! 
पीने का दिल जो चाहे, उन आँखों से पीजिए, 
मत पीजिए शराब, ज़माना खराब है…. 
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है…!
मुमताज राशिद के बोल और पंकज उदास जी की खनकती आवाज ने आज फिर मुझे कुछ उदास सा किया है। मोदी-राहुल बाबा के संग बबुआ-बुआ की राजनीतिक चिंता सबको खाएं जा रही हैं। बिहार अपने यूथ आइकॉन एक्स मंत्री, मुख्यमंत्री पुत्र श्री श्री लालुवंशी यादव के विवाह की तैयारी में मंगलगान गा रहा हैं। इधर तैमूर के पॉटी न होने की खबरें भी मीडिया की सुर्खियां बटोर रही हैं।

अब कल से मीडिया अपनी सोनम कपूर के सोनम आहूजा बनने की खबरें छान रही हैं। वाराणसी के पंडित जी के रंडवा बेटे कुंदन की जोया, फिर देश के लौंडों संग खेल गई। इधर, आम आदमी को जिओ इंटरनेट की लत लगा, अम्बानी चचा अपनी बेटा-बेटी बियाह रहे हैं।अब इसी फ्री 1.5 जीबी फ्री इंटरनेट पर पूर्वांचल के कुँवारे लौंडे, जो कल तक लूलिया मांग रहे थे…आज इस तथ्य पर पीएचडी रिसर्च कर रहे हैं कि राते दिया बुता के पिया, क्या-क्या किया..?

हैरान-परेशान देश दुनिया और विपक्ष, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार से जवाब मांग रही हैं कि आखिर राहुल और सलमान चाचा की शादी क्यों नहीं हो पा रही हैं? अच्छे दिनों के दिवास्वप्न में देश को उलझा, घुम्मकड़ प्रधानमंत्री विदेशों संग स्थापित दोस्ती को अखंड सिंगल्स के लिए रिश्तेदारी में परिवर्तित करने के लिए बाप-दादा जी की भूमिका निभा-निभा कर चप्पल घिस रहे हैं।

लिंगानुपात से जूझ रहे देश में लड़कियों की जबरदस्त शादी वाली डिमांड के बीच ये ड्यूडनिया अपने बाबुल की गली मोहल्ले को बाई-बाई कह, इंस्टाग्राम के बाद अब म्यूजिकली एप्प से अपने कहर युक्त कारनामों से आतंक फैलाई जा रही हैं।

इतना कांड होने के वावजूद अबतक दुनिया को तहस नहस करने वाला तूफान किसी ट्रैफिक जाम में कहीं फंस कर रह गया है। कभी-कभार भारत-भर में फैले भसड़ युक्त चुतियापा से तंग-तंगाकार मन करता हैं कि किसी जिन्ना सेना से प्रशिक्षित होकर दुनिया को एटम बम से सफाया देते हैं। न रहेगी बांस, और न बजेगी बासुरी।

Friday, July 6, 2018

हिंदीभाषी होने का दर्द

भाषा वैसे तो संवाद का माध्यम मात्र है लेकिन हम चीज़ो को मल्टीपरपज बनाने में यकीन रखते है इसलिए हमारे देश में भाषा, संवाद के साथ साथ वाद -विवाद और स्टेटस सिंबल का भी माध्यम बन चुकी है। हमें बचपन में बताया गया की हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाए आपस में बहने है लेकिन सयाने होने पर, इनका झगड़ा देखकर हमें पता चला की इनका रिश्ता आपस में बहन का नहीं है बल्कि देवरानी -जेठानी सा है। 
 दाल इतनी मँहगी होने के बावजूद हम अभी भी घर की मुर्गी को दाल बराबर ही मानते है इसलिए भले ही इंग्लिश अच्छे से ना आती हो लेकिन हिंदी बोलने और लिखने में हमें शर्म ज़रूर आती है। निर्बल का बल भले ही राम को माना जाता है लेकिन “स्टेटस सिंबल” का बल इंग्लिश को ही मनवाया गया है। इंग्लिश को जिस तरह से स्टेटस सिंबल से जोड़ा गया है उसे देखकर लगता है कि इसके लिए ज़रूर एम सील और फेवीक्विक के सयुंक्त उद्यम द्वारा उत्पादित माल का इस्तेमाल किया गया होगा । इंग्लिश और स्टेटस सिंबल का जो ये “मेल-जोल” है उसमे बहुत “झोल” है लेकिन फिर भी ये आपस में इतने मिले हुए है कि इन्हे अलग करना उतना ही मुश्किल है जितना की राहुल गाँधी में नेतृत्व क्षमता ढूँढना ।

भले ही आपने अभी तक लाइफ में कुछ ना उखाड़ा हो लेकिन इंग्लिश बोल और लिख सकने की कल्पना मात्र से आदमी अपने आप अपनी जड़ो से उखड़ने लगता है क्योंकि इंग्लिश आने के बाद कपितय सामाजिक कारणों से इंसान का ज़मीन से दो इंच ऊपर चलना ज़रूरी माना जाता हैं। डॉन का इंतजार तो भले ही 11 मुल्कों की पुलिस करती हो लेकिन एक “सोफिस्टिकेटेड- समाज” में बेइज़्ज़ती, हमेशा इंग्लिश ना जानने वालो का इंतज़ार करती हैं।

हिंदी कहने के लिए (बोलने के लिए नहीं ) भले ही हमारी राजभाषा हो लेकिन उसकी हालत हमने राष्ट्रीय खेल हॉकी जैसी करने में कोई कसर बाकि नहीं रखी है। हम स्वाभिमानी और आत्म निर्भर लोग है इसलिए हमें मंजूर नहीं कि हमारे होते हुए कोई बाहरी व्यक्ति या शक्ति हमारी राष्ट्रीय गौरव से जुड़ी चीज़ो को नुकसान पहुँचाए। मतलब जिन चीज़ो पर राष्ट्रीय होने का तमगा लग जाता है उनकी हालत हम ऐसी कर देते हैं की उन्हें खुद अपने राष्ट्रीय होने पर शर्म आने लगे। हम अहिंसा के अनुयायी है इसीलिए किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए हिंसक नहीं होते, बस केवल उसे अपनी नज़रो में गिरा देते है। हम समता और सदभाव के वाहक है , राष्ट्र की सीमाओं पर घुसपैठ रोकना, अतिथी देवो भव: की हमारी कालजयी अवधारणा के खिलाफ हैं इसलिए “यूनिफोर्मिटी” बनाए रखने के लिए हमने अपनी राष्ट्रीय भाषा में भी दूसरी भाषा के शब्दों की घुसपैठ को बढ़ावा दिया है ताकि ये संदेश दिया जा सके की हम अपनी नीतियों को कन्सिसटेंसी से लागू करते है । “यूनिफार्म सिविल कोड” का विरोध करने वाले लोग इसी “यूनिफोर्मिटी” का हवाला देते हुए तर्क देते है की हम तो पहले से ही “यूनिफार्म सिविल कोड” का पालन कर रहे है।

तमाम काबिलियत के बावजूद हिंदी मीडियम वाले और इंग्लिश ना बोल पाने वालो को हेय दृष्टि से देखा जाता हैं जो HD से भी ज़्यादा क्लियरिटी वाली होती है। बिना इंग्लिश जाने हिंदी मीडियम वालो की सारी योग्यताए ऊंट के मुँह के जीरे के समान होती हैं लेकिन इंग्लिश का ज्ञान मिलते ही वही सारी योग्यताए “जलजीरे” जैसी राहत देती हैं। आजकल हिंदी मीडियम के छात्रों को इंग्लिश की जानकारी अपनी “बुक” से कम और “फेसबुक” से ज़्यादा मिलती है जहाँ वो अपने फ्रेंडस की फोटो पर दूसरों के कमेंट्स देख- देख कर “नाईस पिक” तो लिखना सीख ही जाते है हालांकि उसका मतलब उन्हें तब भी पता नहीं होता है। बुक्स से दूर रहकर भी ये स्टूडेंट्स फेसबुक पर “गुड मॉर्निंग” , “गुड आफ्टरनून”, “गुड इवनिंग” और “गुड नाईट” लिखना सीख जाते हैं और चूँकि फेसबुक पर कॉपी -पेस्ट की सुविधा भी होती है इसलिए “स्पेलिंग मिस्टेक” जैसी कोई दुर्घटना होने की संभावना भी कम ही रहती हैं। लेकिन समस्या तब आती हैं जब चैट करनी हो या किसी के कमेंट का जवाब देना होता है , क्योंकि उस समय बड़ा कन्फ्यूजन हो जाता हैं कि किसी के “हैप्पी बर्थडे” या “आई लव यू” का जवाब “सेम टू यू” से देना है या फिर “थैंक यू” से, और उसी समय किसी भी संभावित बेइज़्ज़ती के खतरे को भाँप लेते हुए हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स लोग आउट करके पतली गली से निकल लेते है ताकि सामने वाला भी उन्ही की तरह भ्रम में जीये. हिंदी मीडियम वाले भले ही “फॉरवर्ड” ना माने जाते हो लेकिन तकनीकी विकास की मदद से कोई भी इंग्लिश वाला मैसेज आगे “फॉरवर्ड” करके “सोफिस्टिकेटेड- समाज” के निर्माण में अपना योगदान तो दे ही रहे है।

स्कूल कॉलेज तक तो हिंदी मीडियम वालो का काम ठीक वैसे ही चल जाता हैं जैसे ख़राब तकनीक वाले बल्लेबाज़ का काम भारतीय पिचों पर चलता हैं लेकिन असली समस्या तब शुरू होती है जब उच्च शिक्षा के लिए इन्हे इंग्लिश से दो-दो हाथ करने के लिए चार पैर वाले पशु की तरह मेहनत करनी पड़ती हैं। मतलब देश की व्यवस्था ऐसी हैं की शिशु अवस्था में चुनी हुई हिंदी आपको व्यस्क होने पर पशुता की तरफ धकेल देती है। हिंदी मीडियम वाले किसी छात्र को जब पता लगता हैं की कोई कोर्स केवल इंग्लिश में ही कर पाना संभव हैं तो उसे इंग्लिश लैंग्वेज चुनौती और हिंदी भाषा पनौती लगने लगती हैं। अगर कोई गलती से या उत्साह से , ये पूछ भी ले की हिंदी राजभाषा वाले देश में इंग्लिश की अनिवार्यता क्यों रखी जाती हैं तो उसका मुँह, मेन्टोस देकर, “दुबारा मत पूछना” स्टाइल में बंद कर दिया जाता हैं।

इंग्लिश ना आने के कारण कुछ लोग हीन भावना के शिकार हो जाते हैं और कुछ लोग 7 दिन में इंग्लिश सीखे जैसे कोर्सेज के। कुछ लोग अपनी कमजोरी को अपना हथियार बना लेते है और ऐसी इंग्लिश बोलने और लिखने लगते हैं मानो अंग्रेज़ो से 200 साल की गुलामी का बदला उनकी भाषा से सूद समेत लेंगे। बड़े बुजुर्ग कह कर गए है , “जहाँ इज़्ज़त ना हो वहाँ इंसान को नहीं जाना चाहिए” , इसलिए हिंदी मीडियम वाले हॉलीवुड की इंग्लिश फिल्में देखने नहीं जाते है और वैसे भी “सयाने लोगो” ने सही कहाँ है की, “अपनी सुरक्षा इंसान को स्वयं करनी चाहिए” और इसके लिए , क्रिकेट में ऑफ स्टंप से बाहर जाती गेंदों से और जीवन में औकात से बाहर जाती चीज़ो से छेड़खानी नहीं करनी चाहिए।



ऐसा नहीं है की हिंदी की दशा और दिशा सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाये जा रहे (हालांकि कई भाषायी विद्वानों का मानना है की अब समय आ गया है की हिंदी की दशा सुधारने के लिए कदम के साथ साथ “हाथ” भी उठाया जाए। ). ये हमारी दूरदर्शिता का ही परिणाम है की हम हिंदी की स्थिती सुधारने के लिए बरसो पहले से ही हिंदी दिवस से हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाड़ा मनाते आ रहे हैं । चिंता, चिता समान है इसलिए हिंदी सप्ताह और पखवाड़े के दौरान जानकारों द्वारा हिंदी की दशा पर व्यक्त की गई चिंता को बैठकों के दौरान बिस्कुट और भुजिया के पैकेट्स पर फूंके गए हज़ारो रुपये की अग्नि में स्वाहा कर दिया जाता है। लेकिन फिर भी विद्वानों द्वारा इतनी अधिक मात्रा में चिंता व्यक्त कर दी जाती है की की इसके “रेडियो एक्टिव” प्रभाव से बचने के लिए और चिंता को ओवरफ्लो होने से बचाने के लिए उसे हिंदी सप्ताह /पखवाड़े के “मिनिट्स” बनाकर फाइलों में दबाकर अलमारियों में रख दिया जाता हैं और फिर अगले साल तक हिंदी चिंतामुक्त होजाती है।

Wednesday, July 4, 2018

इंटरनेशनल भिखारी - पाकिस्तान..!

ठसाठस भरे बाजार के बीच एक आदमी की दहाड़ गूंजी ‘ मैं खुद को उड़ा देनेवाला हूँ ! ‘
चौंक कर सब ने देखा तो एक गोल मटोल सा अधेड़ उम्र का आदमी दिखाई दिया. उसने एक जाकिट पहना था जो खुला था और अन्दर कुछ वायर्स का जंजाल सा दिखाई दे रहा था. जाकिट काफी लदा हुआ दिख रहा था !!

डरते डरते किसी ने पूछा – यह क्या भरा है?

RDX है – चीख कर उसने जवाब दिया और जेब से एक रिमोट निकाला.
हज़ारों की भीड़ में किसी को काटो तो खून नहीं....
फिर एक बुजुर्ग मियां आगे बढे, कहने लगे मियां ऐसा मत करो ...‘ऐसा न करूँ तो क्या करूँ ? ‘ वो चिल्लाया, ‘तंग आ गया हूँ खर्चे से..... आठ बीवियां है, चालीस बच्चे है, सब के मोबाइल बिल, गाड़ियाँ, उसके लिए पेट्रोल, शौपिंग, और अब इन सब को आराम से रहने के लिए मुनासिब एक घर ... खुद को उड़ा देना ही बेहतर होगा ..... उसने रिमोट पर हाथ कसा ..अमां ठहरो मियां , चलो हम तुम्हारी मदद कर देते हैं जितनी बन सके – भीड़ में से एक सहमी सी आवाज आई. रिमोट पर का कसाव थोडा कम हुआ , और थोडा कम हुआ जब एक वेल ड्रेस्ड आदमी ने हज़ार की नोट सामने रक्खी....
लेकिन इसने रईस की भरी जेब देख ली थी; फिर चिल्लाया .....एक से क्या होगा, बेहतर होगा बटन दबा ही दूँ... पूरी थोकड़ी लिए घूम रहा है.... रईस ने थोकड़ी रख ली और झट से रास्ता नाप लिया, फटाफट नोट जमा होने लगे, बीच बीच में ये रिमोट भांजता रहा, चिल्लाता रहा, पैसे जमा होते रहे ...आखिर में एक दुकानदार के नौकर ने उसे एक बोरी थमा दी, जिसमें वो पैसे बटोरने लगा.... अब उसकी चिंता दूर हुई लगती थी, सीटी भी बजा रहा था ...
जब लदी हुई बोरी को ले कर वो निकला तो किसी ने पूछ लिया – मियाँ, आप की तारीफ़?
‘पाकिस्तान’, उसने बेफिक्री से जवाब दिया और चला गया

#भिखारी_देश !